STORYMIRROR

Pratibha Jain

Tragedy

4  

Pratibha Jain

Tragedy

किताबें

किताबें

1 min
310


आलमारी में रखी किताबें आज रो रही है,

चीख चीख कर पूछ रही हैं 

अब कोई हमें छूता नहीं,

क्या 21वीं सदी में छुआछूत

सामाज से निकल कर हम (किताबों) पर आ गया।

क्या अब लोग ज्ञानी नहीं बनना चाहते

भूत भविष्य को जानना नहीं चाहते 

वर्तमान में पढ़ना छोड़ दिया,

ऐसा क्या गुनाह किया हमनें (किताबों),

जो सलाखों के पीछे आ गए

केस तो सबका लड़ा जाता

हमारा नंबर क्यों नहीं आता

हमे क्यों जमानत नहीं मिलती।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy