किस्मत...
किस्मत...


ऐ किस्मत बता तेरे कितने मैं राज खोल दूं...
सोचती हूं कभी-कभी जिंदगी के सारे राज बोल दूं...
बुरा मत मानना जब कभी तुझे जिंदगी में ऐसा मोड़ दूं...
दुनिया समझती रहे उसे कहानी और मैं ऐसी हक़ीक़त बोल दूं...
दुनिया के हर रिश्ते नाते आ तेरे सामने तराजू में तोल दूं...
लग जाए हिसाब तो पूछ लेना वक्त से किसका कितना मोल दूं...
मोड़ दिया ऐसा की चाहत अपनों की थी अब अपनों को ही छोड़ दूं...
ऐ किस्मत जरां बता तेरे कितने राज मैं खोल दूं...
दर्द मंजूर है पर स्वाभिमान कभी भी ना तोड़ दूं...
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सबका साथ निभा तो दूं मगर खुद का साथ छोड़ दूं...
मंजर की ओर राहों में गिर कर उठ खुद ही चल दूं...
ऐ किस्मत जरां बता तेरे कितने राज मैं खोल दूं...
कारवां तो बढ़ रहा है पर खुद को अकेले तन्हाई के सांचे में ढाल दूं...
सबका साथ तो छोड़ दिया अब इस राह पर बता कैसे अकेले चल दूं...
शुक्रिया अदा करूं तेरा या लड़ने के लिए अपनी हिम्मत की दाद दूं...
तकलीफ को इस पेश करूं या खुद के बोल में कैसे अबोल दूं...
ऐ किस्मत जरा बता तेरे कितने राज मैं खोल दूं...
तेरे कितने राज मैं खोल दूं...