किसान
किसान

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खुद भूखा रहकर हमको अन्न दिलाता है
उसके पसीने से ये मिट्टी धान खिलाती है
उस किसान के लिए ये धरती उसकी माता है
आलस न वो करता है धुप में परिश्रम करता है
पर रात की काली अंधेरे में वो चिंता से गुज़रता है
सूरज के उठने से पहले वो पहुंच खेत में जाता है
पर इस मेहनत का फल वो बोहत कम कीमत में पता है
न जाने उसकी किस्मत को कैसे रचता विधाता
आज कर्जदार हुआ भारत का अन्नदाता
मजबूरी में बेबस होकर वो फंसी को गले लगाता
अगर किसान अन्न न उगाता तो ये भारत भूखा रह जाता
उस किसान की मुहपर तुम भी हंसी खिला सकते हो
किसान की मदद कर तुम देश को अन्न दिला सकते हो |