किसान
किसान


हे माँ !वसुंधरा
कौन सुने मेरी व्यथा
ग़रीब भूमिपुत्र मैं
मेहनत से नहीं डरा
ना चाह पकवानों की
दो वक़्त का भूखा रहा
साहस तो बहुत मगर
कर्ज से मैं मर रहा
हे माँ! वसुंधरा
कौन सुने मेरी व्यथा
अनभिज्ञ
राजनीति से
ज्ञान ना कूटनीतिक रहा
सरोकार खेत से
रिश्ता खलिहान से मेरा
कभी जमींदार ने
छीन लिया
कभी सरकार का ठगा रहा
हे माँ ! वसुंधरा
कौन सुने मेरी व्यथा