किसान- फसल
किसान- फसल
फसल ,
कभी सोचा इस बारे में ,
क्या मिट्टी ,पानी ,सूरज ,हवा ,
किसान के हाथ का स्पर्श है ?
शायद नहीं,
फसल खून-पसीना है
अनथक किसान व बैलों का ,
परिणाम है उनके त्याग का,
पीड़ा है उनके अनकहे कष्टों की ,
फल है उसके परिश्रम का ।
दुनिया चाँद पर पहुँच गई
पर ,
हमारा किसान आज भी
प्रेमचंद जी का होरी है ।
बदलाव आया है,
दो चार मशीनों से ज्यादा नहीं,
अधिकतर तो वही पुरानी परंम्परा पर टिके हैं
जैसे उसे निभाना ही उनका कर्तव्य है ।
किसान,
उसके दो बैल,
उसका इतना सामर्थ्य कहाँ?
स्वप्न ले आधुनिक उपकरणों का !
हम तो खुश हो जाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
पर क्या हमारा किसान,
कभी सोचा फसल के बारे में ??
हमारा पेट भरने वाला
आज भी पिस रहा है,
कभी प्रकृति की मार से
कभी कर्जे के भार से।
पर्यावरण के संतुलन बिगड़ने से
किसान के हालात और भी खराब हैं,
फसल का अब कोई भरोसा नहीं
असमय मरने के फँदे तैयार हैं ।
योजनाएँ बनाने से पहले
कोई जाकर देखे हालात,
प्रशासन अपनी आँखें खोले
फिर दें कुछ अच्छी सौगात।
जीने का हक उसको भी है
जो हमको देता जीवन खाद्यान्न,
उसके सहायक बनना है
तभी बनेगा भारत महान।