कि अब तुझमें समाती हूँ
कि अब तुझमें समाती हूँ
मैं जहां जाती हूँ,
तुमको पास पाती हूँ,
तेरी एक झलक में,
ग़म वो सारे भूल जाती हूँ,
तेरी बनकर मैं,
जहां से बेखबर होकर,
सब भूलकर रस्में,
मैं तेरे पास आती हूँ,
कि सब कुछ भूल जाती हूँ।
तेरे इश्क़ का जादू,
नशा बनके यूं छाया है,
तू ही अब हर बात में ,
मन में समाया है,
तेरे सपने हर समय,
अब आंखों में मेरी,
तेरी यादों में जगी,
रातें बिताती हूँ,
कि सब कुछ भूल जाती हूँ।
तूने छू लिया जब से,
मेरी पहचान तुमसे है,
तुमसे ही हैं खुशियां ,
कि सब अरमान तुमसे है,
तुममें ही अब खो रही,
मदहोश सी होकर,
हर सांस के ही साथ,
मैं तुझमें समाती हूँ,
कि सब कुछ भूल जाती हूँ।
अब आदतों में तुम ही,
मेरी चाहतों में तुम,
मंज़िलें तुम ही हो अब,
सब रास्तों में तुम,
तुमको ही पलकों में,
मैं मन में बसाती हूँ
मन के मंदिर में,
तेरी मूरत सजाती हूँ,
कि सब कुछ भूल जाती हूँ।