ख्वाबों की उड़ान
ख्वाबों की उड़ान
शाम ढलते और यू हीं चलते ख़्याल
ए वक़्त का तकाज़ा सा था।
आवाज़ आती किसी कूचे से
शाम ढली या उम्र का पहिया फिर से गुज़रे
वक़्त फिर गिरफ्तारी की बेड़ियां लिए खड़ा है।
हवालात में हम हवलदार लायसेंस लिए
परवरदिगार दहलीज पर खड़ा था।
एक दूसरे से अलग थलग है,
हम हमारी हसी में भी लुप्त प्यार
और भरोसा का एहसास था।
दस्तूर ज़िंदा दिलों के जलाने की
दौड़ में शामिल हुए ऐसे दौर में दौड़ती
हमारी ख्वाबों की उड़ान भरी,
आंखों में नमी कौन सी कमी सी है।
चलती रहे ज़िन्दगी फिर भी अकेले ज़िन्दगी चली है।