ख्वाबों की रानी (भाग1)
ख्वाबों की रानी (भाग1)
मेरे हाथ पर लिखा था
बस एक उसका नाम
किसी ने पूछा तो कहा
है कोई तेरा हमनाम।
हट किया बताओ;
उसमें ऐसा क्या है
उस की खूबसुरती अब
उसके सामने बयां है।
मेरी आँखों में देखकर
वो थोड़ा सा शर्माती है
साबित करने को प्यार
वो थोड़ा सा इतराती थी।
हसीन चेहरा उसका
ज्यों चांदनी पुनम की
सांसों से निकले उसके
ज्यों सुगंध सुमन की।
काली घुंघराली जुल्फें ऐसी
जैसे अमावस की रजनी हो
मासुमीयत इस कदर झलके
जैसे स्वर्ग की कोई सजनी हो।
पलकें टिमटिमाये यूँ वो
ज्यों सितारे चमके गगन में
नशे का आदी था मैं उसका
जलता रहा मैं इस अग्न में।
अधर उसके सुर्ख लाल
ज्यों सवेता अस्त हो रहा
सागर की लहरों में खोकर
किनारे पर मैं मस्त हो रहा।
वक्ष समतल चमक रहा
जैसे थार मे गर्म धूल हो।
गाल से बूंद फिसली पसीने की
जैसे डाली से टुटा कोई फूल हो।
नाभि शोभित गहरी कुई सी
धरा पर खाली पारावार है
बलखाती लचकती कमर
जैसे यौवन पर वो सवार है।