ख्वाब
ख्वाब
आज एक ख्वाब फिर टूटा है,
किसी ने उसे फिर लूटा है।
बंद आँखों में था उसका बसेरा,
वो तो सहमा सदा अकेला ।
जब वो निकला घर से बाहर,
डर के निकला हुआ वो आहत।
आसमान छूना उसकी चाहत,
कभी ऐसी उसे मिली न राहत।
आंख खुली सुबह जैसे न तुला,
आयु उसकी है कहाँ वह भूला।
हर एक ख्वाब कहाँ पलता है,
अपनी लौ में खुद जलता है।
आखिर तो कहना पड़ता है,
उसको भी सहना पड़ता हैं।
आज एक ख्वाब फिर टूटा है,
किसी ने उसे आज फिर लूटा है।