ख्वाब सजा ले
ख्वाब सजा ले
रात की काली स्याही के बीच
जब मन भारी होता है,
लुका छुपी खेलता चाँद,
मुझसे कुछ कहता है।
सो जा तू सारी दुविधाओं को,
बिस्तर के पास छोड़कर,
ओढ़ ले आशाओं की चादर,
टिका के सिर लिहाफ पर,
बंद करले अपनी आँखें।
नींद रानी थपकी देकर,
तुझे सुलाने आएगी।
तू अपनी परेशानियां सारी,
भूल जाएगी।
हवा का झोंका
यूँ तुझको सहलायेगा,
माँ का आँचल
तुझे याद आएगा।
भागती हुई ज़िन्दगी से
कुछ पल चुराले।
तू अपने लिये
ख्वाब सजा ले।
धीरे धीरे जब तू
उसके आगोश में,
खो जाएगी,
तेरी उलझनें पीछे रह जाएंगी।
मन इंद्रधनुषी दूर क्षितिज में,
आशाओं के पंख लगाकर,
स्वच्छन्द विचरण कराएगा।
ना कोई होगा डर,
न कोई अड़चन,
ना समाजों की बेड़िया,
ना बंधन।
पूरी कर लेना
अपनी अभिलाषा तू,
जिसको बरसों छुपाया तूने,
अपने अन्तर्मन में।
गा लेना वो गीत जिसे,
गुनगुनाना भूल गयी।
सबकी ख्वाहिश
पूरी करते करते,
तू जीना भी भूल गयी।
सपने संजोये इन नयनन में,
अब तो पूरा करले तू।
थोड़ा सा तो जी ले तू
अब तो पूरा करले तू।
