ख़्वाब “ इक़ एहसास”
ख़्वाब “ इक़ एहसास”
ख़्वाबों की ख़ूबसूरती को लफ़्ज़ों
में बयां करूँ क़ैसे ..!
क़भी ज़िन्दगी जीने की वजह
तो कभी डरावना मंजर होते हैं यें ख़्वाब..
ख़्वाब ग़र जागते आँखों से देखा तो
जीने का सहारा और हौसला देते ये ख़्वाब..
हसरत से हक़ीक़त की राह में,बेहुनर को गुणवाँ.
अनाम से शोहरत की राह का रुख़ दिखाते ये ख़्वाब..
क़भी यूँ ही बेबाक़, बिंदास होकर
समंदर की गहराईं से साहिल का रुख़ दिखाते ये ख़्वाब.
ग़र, बंद आँखो से देखो तो क़भी
ख़ुद को भँवर में तो ,
क़भी आसमाँ की उचाइयों में पहुँचाते ये ख़्वाब
क़भी हँसाते तो क़भी रुलातीं ये ख़्वाब ..
जनाब ये और कुछ नही
दिल का छोटा सा अहसास है..
ज़ो कभी रूह को रूह से मिलतीं हैं
तो क़भी आँख खुलते ही
बिख़र जाते हैं..
ये ख़्वाब ...!