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कुमार संदीप

Tragedy

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कुमार संदीप

Tragedy

खूं के आंसू रोता हूँ

खूं के आंसू रोता हूँ

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क्या तुम्हें वो दिन याद है ?

जब तुम ने मन से स्वीकारा

था, मुझे सदैव साथ निभाने का

वो वादा हाथ न छुड़ाने का।


वो वादा न जाने अन्य कई वायदे

फिर क्यूं हाथ छुड़ाकर ?

सभी वायदे ध्वस्त कर

तुम छोड़ गई मुझे अकेला,


तुम्हें पता है मैं तुम बिन कैसे जीता हूँ ?

हाँ पल-पल खूं के आंसू रोता हूँ।

अंतर्मन की व्यथा को

शब्दों में कैसे करुं बयां ?


मेरी पीड़ा मेरा दुःख अवर्णनीय है

पर अब मेरी पीड़ा से तुम्हें कोई सरोकार नहीं

तुम्हारी दुनिया तो अब रंग बिरंगी है

मैं और मेरी दुनिया तो अब रंगहीन है।


अरे ! छोड़कर जाना ही था,तो

तुम ने मुझ संग नेह लगाया क्यूं था ?

तुम्हें पता है मैं तुम बिन कैसे जीता हूँ ?

हाँ पल-पल खूं के आंसू रोता हूँ।


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