खूदा का खेल
खूदा का खेल
अदृभूत खेल रचा है खुदा ने,
तो कोई ईश्क में डूबकर दिवाना है,
कोई ईश्क के लिये गमगीन बनकर,
फकीर बनकर दुनिया में भटकता है।
कोई ईश्क की अमीरात में मस्त है,
तो कोई मायूस बनकर सोया हुआ है,
कोई ईश्क की ज़ाम का कटोरा पीकर,
मदहोंश बनकर झूमता रहता है।
कोई पत्थरें और ठोकर खाता है,
तो कोई ईश्क में मजनू बनना चाहता है,
कोई ईश्क के लिये घायल बनकर,
ईश्क का मरीज़ कायम बन जाता है।
कोई ईश्क की ईबादत करता है,
तो कोई नफ़रत की आग में जलता है।
कोई ईश्क की ज़ाल में फंसकर "मुरली",
बाहर आने के लिये कायम तड़पता है।