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kavyanjali _touchofpoetry

Drama

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kavyanjali _touchofpoetry

Drama

खुदगर्जी

खुदगर्जी

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खुद ही के बारे में खुद सोच के

इतना भी खुदगर्ज ना हो जाना

कि खुद ही को ढूंढने में खुद तुझे

खुदा का सहारा लेना पड़े।


खुदगर्जी में डूबना नहीं इतना कभी,

कि खुद ही समुन्दर में

तैरना भूल जाओ,


माना तैर के उभारना है

ज़िन्दगी का दूसरा नाम

पर ये तेरी खुदगर्जी कहीं कर ना दे

ज़िन्दगी का काम तमाम।


खुद से उभर के थोड़ा

दुनिया को देख

हमदर्दी से ना सही

हमदिली की आँखों से देख।


बता तेरी खुदगर्जी को कि

खुद से परे भी एक दुनिया है

उस दुनिया को

अपनों के साथ जीना है।


लहरों के साथ अपनों के

समुन्दर को तैरना है

खुश तो तू है ही दुनिया से,

थोड़ी बाँटनी है उस खुशी को।


आसमान से चुराके

धरती पे फैलानी है उसे

कब तक जियेगा इस खुदगर्जी में

आखिर मिट्टी से बन के

उसी मिट्टी में खो जाना है तुझे...।।


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