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आख़िर बचपना है क्या नादानी में उठाये कदम या नादान होने का दिखावा....! आख़िर बचपना है क्या नादानी में उठाये कदम या नादान होने का दिखावा....!
उसे गले लगाकर जिंदगी का बाकी सफर काटते ही रह गया। उसे गले लगाकर जिंदगी का बाकी सफर काटते ही रह गया।
आखिर मिट्टी से बन के उसी मिट्टी में खो जाना है तुझे...।। आखिर मिट्टी से बन के उसी मिट्टी में खो जाना है तुझे...।।
किसी न किसी के साथ शायद ऐसा ही हुआ था। किसी न किसी के साथ शायद ऐसा ही हुआ था।
जैसे पाया टूट जाने से खिलौना टूटता नहीं ठीक वैसे ही ज़िन्दगी रुठ जाने से जीने का मकसद टूटता नहीं जैसे पाया टूट जाने से खिलौना टूटता नहीं ठीक वैसे ही ज़िन्दगी रुठ जाने से जीने...
क्या कभी रोते हुए, पुरानी यादों ने थोड़ा और रुलाया था क्या मंज़िल के आखिरी कदम पर पाँव यूँ ही लड़खड़... क्या कभी रोते हुए, पुरानी यादों ने थोड़ा और रुलाया था क्या मंज़िल के आखिरी कदम प...