खुदा तू इंसाफ मांगता रह जाएगा
खुदा तू इंसाफ मांगता रह जाएगा
तेरे घर में मैंने अपना घर बना लिया
बाहर दरवाजे पर जो लटकाई है तख्ती
उस पर मजहब का पोस्टर चिपका लिया
तेरी आड़ में तेरा ही नाम लेकर
तेरे घर को मैं गंदा करता रहा।
चलता है जो आजकल सबसे ज्यादा
बे हिसाब वो धंधा मै करता रहा
मुस्कुरा रही है हैवानियत
शांत तू भी चुपचाप पड़ा है
तेरे इस जग मे तेरे ही नाम का तो दंगा छिड़ा है।
लगता है अब तो मुझको मेरे मालिक
तू भी मेरी तरह अंजान नाम का चोला ओढ़ खड़ा है
तेरे घर को अपना घर बना
तुझको फिर से वनवास का रस्ता दिखा दिया।
पता नहीं कौन सी सत्ता का मोह है
जिसकी खातिर भाई ने भाई का रक्त बहा दिया
इक दिन ऐसा आएगा
इंसान अल्लाह ईश्वर को कोर्ट घसिट ले जाएगा
तारीखों पर तारिखें मिलती रहेगी।
तू अपनी धरा पर खुद
इंसाफ मांगता रह जाएगा।
