खुद से ही गुफ्तगू करने लगा हूँ
खुद से ही गुफ्तगू करने लगा हूँ
खुद से ही गुफ्तगू करने लगा हूँ
बिना कुछ कहे अब मैं
हर एक बात उसकी समझने लगा हूं
इशारों ही इशारों में
उसके भावों को पढ़ने लगा हूं
उसके हर दर्द को
महसूस करने लगा हूं
पर उसकी...
ऐयारी को भी समझने लगा हूँ
खुद से ही अब मैं, गुफ़्तगू करने लगा हूँ।
अब मैंने भी चेहरे पर
चेहरा लगाना सीख लिया है
अपनी जहमत को
छुपाना सीख लिया है
अब मुझे देखकर
छुपना नहीं पड़ता, उसे
अपनी हर परेशानी को, हल करने लगा हूँ
खुद से ही अब मैं, गुफ्तगू करने लगा हूं।
कोई नफरत करे या मोहब्बत
दया को त्याग कर
हर मसले को हल करना
बेवजह बहस ना कर
समस्या को खत्म करना
हर अक्षर को कलमबंद
करना सीख लिया है, मैंने
मुझे कबीर नहीं बनना
फरमावरदार बन कर
अब मैं बहुत खुश, रहने लगा हूं
खुद से ही अब मैं, गुफ्तगू करने लगा हूं।
खुद से ही अब मैं गुफ्तगू करने लगा हूं।।
खुद से ही अब मैं गुफ्तगू करने लगा हूं।।
