STORYMIRROR

Shiwani Babu

Tragedy

2  

Shiwani Babu

Tragedy

खुद को समझती हूं

खुद को समझती हूं

1 min
2.9K

अपनी ही गुस्ताखियों से टूटी हूं,

इसलिए खुद से ही रुठी हूं।


खुद की बातों को नज़रअंदाज़ करती हूं,

मिलकर खुद से खुद को अनजान रखती हूं।


शिकायतें खुद से खुद की करती हूं,

और उलझन में डाल खुद को खुद पर हंसती हूं।


दूसरों की बातें सुनकर थक चुकी हूं,

अब खुद की बातें खुद से करती हूं।


खुश हूं, खुद से खुद को समझती हूं,

औरों की तरह दूसरों की जिंदगी बिना जाने

खुद की राय नहीं रखती हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy