ना जाने
ना जाने
1 min
14
ना जाने, किस सोच को दबाना है,
और किस सोच के परे उठ के दिखाना है।
ना जाने, बेटी हू़ंं बेटे से कंधा मिलाकर चलना है,
या फिर बेटी की तरह ही गर्व से जी कर दिखाना है।
ना जाने, सच मे जमाने की सोच मे फंसी हूं,
या फिर ये बचने का कोई बहाना है।
ना जाने, सच की लड़ाई बहुत लड़ चुकी हूं,
या फिर ये तकलीफ़ो से मुंह मोड़ने का कोई फसाना है।
ना जाने, रास्ता भटक गई हूं,
या फिर थक के मंज़िल तक ही न जाना है।
ना जाने, सही गलत के सोच मे अटकीं हुई हूं,
या फिर इसमें चिंता अपनों का भी पकड़ा जाना है।
