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यादों का क्या है अक्सर आती जाती रहती हैं, लेकिन हमने भी दिल पे कोई पहरा नहीं लगाया है। यादों का क्या है अक्सर आती जाती रहती हैं, लेकिन हमने भी दिल पे कोई पहरा नहीं ...
समझ समझ की बात है, क्या समझूं क्या न समझूं। समझ समझ की बात है, क्या समझूं क्या न समझूं।
जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है। जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है।
ना जाने, किस सोच को दबाना है, और किस सोच के परे उठ के दिखाना है। ना जाने, किस सोच को दबाना है, और किस सोच के परे उठ के दिखाना है।
कभी वो मस्तियां थी, लेकिन अब हम उन्हें यादें बनाए जा रहे हैं। कभी वो मस्तियां थी, लेकिन अब हम उन्हें यादें बनाए जा रहे हैं।
अपनी ही गुस्ताखियों से टूटी हूं, इसलिए खुद से ही रुठी हूं। अपनी ही गुस्ताखियों से टूटी हूं, इसलिए खुद से ही रुठी हूं।
यादों की माला उसकी भी टूटी होगी यादों की माला उसकी भी टूटी होगी