खुबसूरत पुर्णिमा और सुर्य उदय
खुबसूरत पुर्णिमा और सुर्य उदय
आज पूर्णिमा थी,
चांद अपनी ख़ूबसूरती की,
सबसे ऊंची पायदान पर था,
हर महबूबा जल रही थी,
हर शायर,
चांद की तारीफ में लिख रहा था,
हर आशिक भी,
उसे निहार रहा था,
सोच रहा था,
काश! ये मेेेेरा महबूब होता,
तो जब ये निकलता,
मेरी ओर देेख मुस्कराता,
और मैं येे कहता,
ऐ मेेेेरे महबूब,
तूं हर रोज,
क्यों नहीं निकलता,
तेरा इंतज़ार,
बहुत लंबा होता।
उधर सूर्य भी,
इसका आशिक,
परंतु जैैैसे ही,
वो निकलता,
ये अपने आपको छिपा लेता,
ये डरता,
कहीं सूर्य,
इसको अपने तेज से,
ग्रसित न कर दे।