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Bikash Baruah

Abstract

4.2  

Bikash Baruah

Abstract

खुब हँसेंगे जी भर के

खुब हँसेंगे जी भर के

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उदास न होना मेरे दोस्त 

दीन खुशी के आयेंगे,

अंधेरा छाया है तो क्या 

सुबह सूरज तो उगेंगे।


संभालों ओस की बूंदों को

प्यास ये भी बूझा सकतें हैं,

महलों में ही नहीं खुशियां

झोपड़ों में भी मिल सकतें हैं।


शक्ल रूआंसा और ना बनाओं

मुस्कराहट से ढक लो चेहरे को,

ज़िंदा हो जिंदादिली से जीओ

मरना है तो सिर्फ एक बार मरो।


अपना-पराया कोई नहीं जग में 

रिश्ते-नाते सब हैं भरम के,

फिर गिले शिकवे क्यों करें किसीसे 

खूब हँसेंगे अब हम जी भर के।


हाँ दोस्तों ! खूब हँसेंगे जी भर के।।


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