खट्टी-मीठी अंबिया ,सी अल्हड़ ये लड़कियाँ,
खट्टी-मीठी अंबिया ,सी अल्हड़ ये लड़कियाँ,
खट्टी-मीठी अंबिया, सी
अल्हड़ ये लड़कियाँ,
वक़्त के चूल्हे पर,
पकती मानो कच्ची-पक्की
सोंधी सी रोटियाँ,
हवा के संग इठलाती,
मानो पेड़ों की डालियाँ,
या रंग-बिरंगे ख़्वाबों को बुनती
हों नटखट तितलियाँ,
या ज़िन्दगी की खुशबू से महकती
नाज़ुक सी कलियाँ,
या शहरों की घूमती सी,
अल्हड़ सी वो गलियाँ,
हैं घर के आँगन में गूँजती
खुशियों की किलकारियाँ,
थकी-थकी आँखों को सुकून देती,
मीठी-मीठी सी लोरियाँ,
खट्टी-मीठी अंबिया सी
अल्हड़ ये लड़कियाँ"
