कहते है इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है
कहते है इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है
कहते है इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है
अगर ऐसा ही है तोह इंसान को दुख क्यु होता है
कहते है इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है
अगर ऐसा ही है तोह जिंदगी हमे क्यु रुलाती है
और सुख आने से पेहले क्यु चला जाता है
अगर हम खुद किस्मत लिख सकते
तोह अपने लिए सुख नही लिखते
रोटी कमाने के लिए
जिंदगी भर मेहनत न करनी पड़ती
पिछले जनम के कर्म ही तोह है जो हमे रुलाते है
किस्मत तोह ऊपर वाला ही लिखता है
हम तोह कठपुतली है
जो कभी इधर डोलते है तोह कभी उधर
किस्मत का खेल है निराला
कभी किसी को इतना देती है कि
उसकी ख़ुशी की सीमा न हो और किसी को कुछ भी नहि देती
इंसान जिंदगी भर अपनी किस्मत पर रोता है
अगर हम किस्मत लिख सकते तो
हमारे कोई सपने नहीं रहते अधुरे होते सारे सपने हमारे पूरे।