खत खुशी का
खत खुशी का
एक मुस्कान दिखी थी
मेरे जीवन में मुस्कुराते हुए
जैसे शिला संगमरमर की
निकली हो नदी से नहाते हुए
मुस्कुराहट भी ऐसी मानो
मुस्कुरा रहा था अंग अंग
जैसे मुस्कुराती है पवन
मुस्कुराते फूलों के संग संग
मैंने सोचा रख लूं मैं भी
अधरों में उसे सजा कर
मैं खुश होऊंगा होगी
मां भी खुश उसको पाकर
तब आया इक नया संदेशा
मां ने खुशी सजाई थी
उसने भी मुस्कान खुदा से
मेरे लिए मंगाई थी
मैंने मेरी मुस्कान छोड़ दी
मां की खुशी सजाने को
आग लगाई खत में अपने
मां की खुशी बचाने को
मेरी मुस्कान मैंने उसकी
खुद खुदा ने बनाया था
देकर मुझे अपनी खुशी,
मां के मुख से खुदा मुस्कुराया था।