खत कहीं खो गया
खत कहीं खो गया
चिट्ठी का सफ़र अब पुराना हो गया है,
रंगीन उन्हीं यादों को भूलने में जमाना हो गया है,
होता था एक ख़त से दिलों का मेल,
अब मेल भी गूगल का दीवाना हो गया है।
हफ्ते-दो-हफ्ते देरी से पहुंचता था पत्र,
फिर भी नहीं टूटता था प्रेम-जगत का सत्र,
ये सज़ा अपनों ने अपनों को ही दी है यारों,
सोशल मीडिया का तो सिर्फ़ बहाना हो गया है।
बड़ी शिद्दत से पनपते थे रिश्ते आपस में,
खिल उठते थे चेहरे लिखावट के भेस में,
मुखड़ा-ए-लिखावट बुरी नज़र का निशाना हो गया है,
आज रिश्तों में भी बेबसी का तराना हो गया है,
संदेश में प्यार और आशीर्वाद की होड़ होती थी,
उसकी जगह हाय हेलो की जोड़ होती है,
अब व्हाट्सएप पर कॉपी पेस्ट का कारोबार हो गया है,
संभाषण भी झूठी मुस्कान और
मिलावट का अफ़साना हो गया है।
पैगाम पहुंचाने वाला डाकिया भी इज्जत पाता था,
कबूतरों की चतुराई का अंदाज बताता था,
ट्विटर पर ट्वीट करना डेली रूटीन का काम हो गया है,
आज फेसबुक का वीडियो संस्कार का खज़ाना हो गया है।
टेक्नोलॉजी के ज़माने के हम दीवाने हो बैठे हैं,
सदियों से पुरानी खत लिखने की कला को खो बैठे हैं,
एक चिट्ठी से हालात समझने वाला अब कहीं खो गया है,
विचारों के आदान प्रदान की
दिलचस्प प्रणाली अंजाम बुरा हो गया है।
न जाने मेरा खत कहीं खो गया है
न जाने मेरा खत कहीं खो गया है।