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Ruchika Rai

Abstract

4  

Ruchika Rai

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खरपतवार सी होती इच्छाएं

खरपतवार सी होती इच्छाएं

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खरपतवार की तरह होती हैं कुछ इच्छाएं

जो जन्म लेती हैं 

पलती हैं बढ़ती हैं

बिना किसी जरूरत के।

कितना भी काटो, उखाड़ो, नोचो

फिर भी उग ही आती हैं

वैसी ही होती हैं कुछ इच्छाएं।


नहीं जरूरत होती उनकी

बस मन में पलने लगती हैं

तकलीफ पहुँचाती हैं

दर्द देती हैं

चाहे कितना भी नोचो उखाड़ो और दबाओ,

मन में पलती ही रहती हैं,

खरपतवार की तरह होती हैं इच्छाएं।


जैसे कभी खरपतवार को खत्म करने के लिए

होती है दवाओं का छिड़काव,

ठीक उसी प्रकार से

इन इच्छाओं को करवाया जाता है सामना

बताया जाता है

कि नहीं है यह उपयोगी

नहीं है सही किसी भी दृष्टिकोण,

फिर भी मनमौजी सी ये

कहाँ सुनती हैं

उग ही आती हैं

दिल के बंजर जमीन पर

बिना खाद पानी के,

बिना परवाह ख्याल और जतन के

खरपतवार सी होती हैं ये इच्छाएं।

बेगैरत बेपरवाह मनमौजी।



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