कहर
कहर
सोलह जून दो हज़ार तेरह
को आया ऐसा सैलाब,
केदारनाथ में बहा कर ले गया
हज़ारों के घर असबाब।
प्रकृति ने सब पर उस
वक्त ढाया ऐसा कहर,
जल प्रलय में खो गए गाँव
और पता नही कितने शहर।
लोगों के मन में छाया था हर वक्त डर,
जाने कब किसे बहा कर ले जाये
बारिश का ये डरावना मंजर।
हो गए लाखों लोग वहाँ घर से बेघर ,
जाने कितनों के खो गए हमसफ़र ,
ज़िन्दगी का सफर फिर भी जारी है,
नियति के आगे जीने का फ़लसफ़ा भारी है।