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Laxmi Tyagi

Inspirational Children

4  

Laxmi Tyagi

Inspirational Children

खोया बचपन

खोया बचपन

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बचपन भोला था ,


मासूम ,अनजान था। 


जो साथ खेला ,वही दोस्त !


फिर चाहे ,दादी हों, या दादा ! 


न भविष्य, की चिंता ,


न भूतकाल का ज्ञान !


वर्तमान में जीता था। 


जो मन को अच्छा लगे ,


वही दोस्त बन जाता था। 


चाहे, मेले की फिरकी हो। 


या फिर हो कोई गुब्बारा !


कीमत उसकी का महत्व नहीं ,


चाहिए वही ,जो लगे आँखों को प्यारा !


कट्टी से बट्टी तक का सफ़र !


सजकर ,नवीन वस्त्र पहन !


इठलाते हुए ,दिखाने की डगर !


भोलेपन का ,जिन्दा वो सफ़र !


आज खोया है ,यादों के साये में ,


बड़ा बनने की चाहत !न जाने !


कहाँ गया ?वो बचपन ,बिन आहट !


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