खोज अपनत्व की
खोज अपनत्व की
अमानत बन के आई
शक्ति ,लक्ष्मी, पूज्या कहलाई
पर खुशी की जगह उदासी
कभी बजती नहीं बधाई
बेटों से कमतर
अबला कहें अकसर
पराया धन पुकारे
विदा करदी जाती
समय पर दूजे घर
लिया जन्म जिस घर
पराया ही बन कर
बहू बन के जाती
अपना पन खोजती
वहां भी पराई कहते समझते
रिश्तों की डोरी बुनती
सदा अपनाती सबको
ममता,त्यागमूर्ति बनकर
अपना बनाकर
नाम रिश्ते नाते
दूसरों से जोड़े
होती हैं बेटियां
पराई ही आखिर।
