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Jitendra Meena

Abstract

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Jitendra Meena

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खोज अपनों की

खोज अपनों की

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बहुत खोजा मैने अपनों को 

अपना कोई नजर ही न आया,


कोशिस की थी अपना बनाने की

मगर कोई अपना ना बन पाया,


मै क्या नही बना अपनों के लिये 

कोई हाँ न कर पाया सपनों के लिये,


एक चाह थी कोई अपना भी हो 

मगर एक चाह चाह ही रह गई,


मै लिखता हूँ तो सिर्फ अपनों के लिये

मै गाता हूँ तो खोज करने के लिये,


बहुत खोजा मैंने अपनों को 

अपना कोई नजर ही न आया।


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