बिक चुका तंत्र
बिक चुका तंत्र
तुम चीखते रहो चिल्लाते रहो
फिर भी वो उसे नाटक समझेंगे,
बेच डाला जिन्होंने खुद को
वो तुम्हारा दर्द क्या समझेंगे,
यही तो मेरे देश का सिस्टम है
तुम रोते रहो वो उसे खेल समझेंगे,
समय से तो पहुंची थी परीक्षा देने
भ्रष्ट तंत्र ने उसे परीक्षा में बैठने न दिया,
समय से ही टहला दिया उसे इस गेट से उस गेट तक
मगर बिके हुए लोगों ने उसे जाने न दिया,
वो भी माँ बाप की उम्मीद पूरा करना चाहती थी
अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी,
मगर कुछ अपने आप को बेच चुके
शिक्षकों ने उसे परीक्षा में बैठने न दिया ।।
( सीकर के श्री कल्याण कॉलेज में छात्राओं को रीट परीक्षा के लिये घुसने नहीं दिया गया, कविता इसी घटना पर आधारित है )