कहीं धूप कहीं छांव
कहीं धूप कहीं छांव
कहीं धूप कहीं छाया प्रभु तेरे मन मे है क्या समाया ?
कहीं कोई खाली पेट सोता है तो कहीं कोई भूख के लिए रोता है।
कहीं नींद नर्म गद्दे मे भी ना आती तो कहीं कंकड़ पत्थर की सेज सज जाती ।
कहीं लाल(रत्न अमीर) के लाल(बेटा) ही लाल (क्रोधित) हो जाते हैं ।
झोपड़ी में बसे जो वे भी तो गुदड़ी के ही लाल कहाते है ।
कहीं तन ढकने को नहीं होते हैं वसन
तो कहीं फैशन में तन होता है नगन ।
कहीं ममता तड़पती है बच्चे के लिए
कहीं तरसते बाल मां की ममता हिए
राम तेरी माया कहीं धूप कहीं छाया जाने क्या तेरे मन में है समाया ?