ख़ामोशी
ख़ामोशी
जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी,
हँसती हुई ये आँखें कभी परेशान न थी।
कितने तूफानो सें निकली ये कश्ती,
सागर की लहरे हैरान न थी।
मुश्किलों से भरा हुआ दामन है मेरा,
हँसता हुआ फिर भी है सवेरा।
काँटो को भी हँस कर देखा है हमने,
गुलाबों की हमें पहचान न थी।
जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी।।
जीवन की सच्चाई को पास से देखा है मैने,
मुश्किल है जीना, लगे हम भी कहने।
कोई ओर होता तो न जाने क्या करता,
पर जिंदा थे हम, क्योंकि जिंदगी थी,
मौत का फरमान न थी।
जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी।।
आज यहा तक मैं
तूफानों से लड़कर आया हूँ।
मेहनत से ही मैं,
सब कुछ पाया हूँ।
कोई मुझे भी जिंदगी मैं कुछ बना सके
ऐसे नसीब से मेरी पहचान न थी।
जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी।।
कहता हूँ इतना ही कि कभी,
जिंदगी मैं हार मत मानना।
तुम कर सकते हो सब कुछ,
खुद को इतना काबिल मानना।
क्योंकि जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी।
जिंदगी की ये डगर कभी आसान न थी।।
