निजी व सरकारी अस्पताल
निजी व सरकारी अस्पताल
बैठे -बैठे दिमाग में एक बात आ गई,
निजी और सरकारी अस्पतालों से जुड़ी समस्याएं आँखों मे छा गई।
मुझे याद है वो दिन, जब पड़ोस के अंकल बहुत बीमार थे,
अस्पताल ले जाना था पर सरकारी ,निजी पर सबके अलग विचार थे।
कोई बोल रहा था सरकारी में जाएंगे तो वापस नहीं आएंगे,
न जाने सरकारी अस्पताल वाले कितना समय लगाएंगे।
नंबर लगाने में ही आधा दिन निकल जाएगा,
क्या पता समय से नंबर आयगा या नहीं आएगा।
मेरी बात मानों निजी अस्पताल चलते हैं,
अंकल जी को वहीं एडमिट करते हैं।
अच्छा इलाज होगा सुविधायें भी सारी होंगी,
सब डॉक्टर हैं वहाँ चाहे कुछ भी बीमारी होगी।
बस पैसा भर -भर कर चाहिए,
साँस लेने पर भी जरा पैमेंट कर आइए।
अंकल जी को निजी अस्पताल ले गए,
शायद अब ठीक होंगे ,सब दिलासा दे गए ।
पैसे देकर भरोसा सा भी बढ़ जाता है,
भगवान सा दिखता है, जो भी डॉक्टर आता है।
अस्पताल के ख़र्चे जी भर कर हमने भर दिए,
अंकल जी की कमाई को अस्पताल पर न्यौछावर कर दिए।
बस सोचती हूँ, अस्पताल तो अस्पताल है, फिर इतना अंतर क्यों?
क्यों कोई निजी अस्पतालों की मनमानी पर लगाम नहीं कसता,
क्यों सरकारी अस्पताल जाने में डर है सबको लगता।
चार गुना रेट है, निजी अस्पतालों के,
पर लोग भी जाते वहीं है।
इंसान से बढ़कर पैसा थोड़े ही है,
ये भी तो बात सही ही है।।
सरकारी अस्पतालों को कुछ इस लायक बनाओ,
की सब लोग अच्छे इलाज़ को पाए।
निजी अस्पताल में न जाकर वह सरकारी
अस्पताल में ही इलाज कराए ।।
बड़ी बीमारियों का इलाज,
सरकारी में मिलता नहीं है।
बिना निजी में गए फिर ,
काम चलता नहीं है।।
अगर सब सुविधाएं सरकारी में होंगी,
तो इंसान क्यों निजी में जाएगा।
कुछ भी हो उस को परेशानी,
सबसे पहले सरकारी अस्पताल ही आएगा।
क्यों निजी अस्पतालों की मर्ज़ी हम सहेंगे,
कम दाम में भी इलाज़ होगा ये कहेंगे।
निजी अस्पताल भी फिर कुछ नीचे आएंगे,
और सरकारी अस्पताल के साथ कदम से कदम मिलाएंगे।
सपना मेरा है, मेरा भारत कुछ ऐसा हो,
भाईचारा, सेवा भावना हो सबके मन में।
पैसों के कारण कोई जीवन ना जाए,
खुशियाँ भरी हो हर आँगन में।।
