बचपन
बचपन
जब कोई गम मुझे छु नहीं पाता था
जब कोई सपना ना दिल सजाता था
बस पापा को भागकर पकड़ना और
फिर पापा के डर से माँ के आँचल मे छुपना
बहुत याद आता है मुझे मेरा बचपन
वो किसी चीज़ पर मेरा मचलना
न मिलने पर कुछ देर सुबकना
और कुछ देर बाद सब कुछ भूलकर
तितली की तरह फुदकना
खेलने मे ही लगता था तब मेरा मन
बहुत याद आता है मुझे मेरा बचपन
जब कोई चिंता ना मुझे रहती थी
पागल लड़की मेरी मम्मी मुझे कहती थी
मेरी हर शैतानी को तब वो
कुछ गुस्से मे तो कुछ हँस कर सहती थी
मिट्टी मे रहता था तब मेरा तन
बहुत याद आता है मुझे मेरा बचपन
हो जाना चाहती हू फिर से छोटी मे
चढ़कर पापा की गोदी मे
गाँव की गलियों मे फिर घूमना चाहती हूँ
कुछ समय के लिए ही सही
बहुत याद आता है मुझे मेरा बचपन
बहुत याद आता है मुझे मेरा बचपन