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Dr. Vijay Laxmi

Classics

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Dr. Vijay Laxmi

Classics

खग की भाषा खग ही जाने

खग की भाषा खग ही जाने

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या तन, खग की भाषा खग ही जाने,

हिय प्रेम मिठास, अबोध भी पहिचाने।


प्रेम की भाषायें अकथ, कही न जायें,  

अमोल पूंजी जीवन की जो इसे पायें।


प्रेम जब सिन्धु तल सा अति गहन हो,

मन में लगन, स्वार्थ भाव का दहन हो।


नेत्र, कपोल, गात्र का अंग-अंग बोलता,

प्रेम की भाषा मूक, निःशब्द भी डोलता 


अशब्द अपनत्व भाव सब कह जाता,

प्रेम बरसात अंतर भिगो सरसा जाता।


सुहृद स्पर्श बिन कहे समझ का भाव,  

प्यार संचार की सुरभित सुरभि नाव।  


प्यार दुलार, सराहना, शुक्रिया धन्यवाद,

प्रेम की सरल सहज वर्णमाला आबाद। 

आत्मैक्य सहचारिता सुखद अहसास,  

सच्चा अशर्त प्रेम समर्पण का आभास।


प्रेम देश, धर्म, जात-पांत परे करे संवाद

गूंगे का गुड़ ज्यों, प्रेम भाषायें निर्विवाद।


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