खौल रहा है लहू
खौल रहा है लहू
खौल रहा है लहू
पुलवामा हमले के से
सिसक रहा है मन
न हों ऐसे हादसे
अमन और शांति की
चाहत का दम भरते हैं
उन्ही के गलियारों से होकर
दुश्मन मानवता के चलते हैं
ये कैसी मजबूरी या कौन सा
प्रयास है
निर्दोषों की चिताओं पर
स्वमहलों की आस है
ऐसी घृणित पट्टी
कहाँ पढ़ाई जाती है
मानव बम की फ़ैक्टरी
जहाँ लगाई जाती है
उत्पाद बढ़ा विध्वंसक
सामग्रियों का, शर्मसार
हुई मानवता
महज अंतराष्ट्रीय एकता
का स्वांग रचने से
क्या होगा?
सच का सामना आज नहीं
तो कल करना होगा
सुधर जाओ अमन के दुश्मन
आखिरी अरदास है
वरना बोये जो बबूल
न करे आम की आस रे
खौल रहा है लहू
पुलवामा हमले के बाद से
तो शहीदों की चिताएँ
हम यूँ न भूल पाएंगे
दुश्मनों को उनके ही
घर मे मजा चखाएँगे
गांधी गिरी बहुत हुई
अब वीर सुभाष बन जाएंगे
एक नई मुक्ति वाहिनी
फिर हम नई बनाएँगे
अपने अमर जवानों का
कुछ तो कर्ज़ चुकाएंगे
वरना कोसेगी आत्मा
मरने के भी बाद रे
खौल रहा है लहू
पुलवामा हमले के बाद से