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Aditya Agnihotri

Fantasy

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Aditya Agnihotri

Fantasy

कहानी

कहानी

1 min
380


पहले कहानी को मैंने कलम की

नोंक से पकड़ रखा था

लिखते लिखते अब कहानी

मेरे हाथ की छोटी अंगुली को

थाम कर चलने लगी है

पता नहीं बाज़ार में कहाँ

जलेबी की तरह घुमाए जा रही है

कहाँ ख़त्म होना है कहाँ से मुड़ना है

जाना कहाँ है सब बता के ले के आया था

फिर भी कमबख़्त पता नहीं क्यों

हर मोड़ पर, हर चौराहे पर,

हर दुकान पर, रुक-रुक के इस तरह

आराम से ठहर के सोचती है जैसे

इसे यहीं मुक़ाम हासिल हुआ जा रहा हो

धीरे से फिर चल पड़ती है

लुढ़कने लगती है अपनी मर्ज़ी से

कितना मज़ा आता है इसे मुझे

परेशान करने में और मुझे इससे परेशान होने में

कुछ देर के लिए भूल ही जाता हूँ कि

मैं इसे यहाँ ले कर आया हूँ या

ये मुझे ले कर आई है

पहले कहानी को मैंने पकड़ा था

अब इसने मुझे थाम लिया है!


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