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Aditya Agnihotri

Fantasy

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Aditya Agnihotri

Fantasy

कहानी

कहानी

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पहले कहानी को मैंने कलम की

नोंक से पकड़ रखा था

लिखते लिखते अब कहानी

मेरे हाथ की छोटी अंगुली को

थाम कर चलने लगी है

पता नहीं बाज़ार में कहाँ

जलेबी की तरह घुमाए जा रही है

कहाँ ख़त्म होना है कहाँ से मुड़ना है

जाना कहाँ है सब बता के ले के आया था

फिर भी कमबख़्त पता नहीं क्यों

हर मोड़ पर, हर चौराहे पर,

हर दुकान पर, रुक-रुक के इस तरह

आराम से ठहर के सोचती है जैसे

इसे यहीं मुक़ाम हासिल हुआ जा रहा हो

धीरे से फिर चल पड़ती है

लुढ़कने लगती है अपनी मर्ज़ी से

कितना मज़ा आता है इसे मुझे

परेशान करने में और मुझे इससे परेशान होने में

कुछ देर के लिए भूल ही जाता हूँ कि

मैं इसे यहाँ ले कर आया हूँ या

ये मुझे ले कर आई है

पहले कहानी को मैंने पकड़ा था

अब इसने मुझे थाम लिया है!


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