STORYMIRROR

Aditya Agnihotri

Others

3  

Aditya Agnihotri

Others

माँ भी इक इंसान है!

माँ भी इक इंसान है!

2 mins
145


कहीं हमने अपनी-अपनी सहूलियत के

हिसाब से इक इंसान से उसका मूलभूत

दर्जा छीन कर इक अनजाने तख़्त पर

ज़बरदस्ती तो नहीं बिठा दिया ?

कि अब तुम माँ हो....


अब तुम्हें माँ की परिभाषा के इर्द-गिर्द

बने पिंजरे में आनंद से रहना है और

हर उस चीज़ पर बखूबी से खरा उतरना है

जिसपे एक माँ को उतरना चाहिए 


वो तुम्हारी माँ हो या मेरी, वो बीवी हो या

बेटी हो, बहन हो, बुआ हो, चाची हो,

मौसी हो या एक विधवा हो या डिवोर्सी हो

या एक्स-गर्लफ्रेंड या वो माँ जो अब किसी

और की गर्लफ्रेंड है या सिर्फ फ्रेंड है..

इन सब से परे, वो सबसे पहले इक इंसान है


वो इंसान जिसे ख़्वाब देखने की पूरी

आज़ादी है और उन्हें पूरा करने की भी, 

और कोई भी ग़लती करने की भी

जो हम सब कभी न कभी कर बैठते हैं

समाज, परिवार के उस ज़बरदस्ती के दिए

तमगे और तख़्त से तुम उसका मूलभूत

स्वरुप मत बदलो क्यूंकि उसे भी जब

इस तमगे की चाहत थी वो भी बहुत

हल्का हल्का ही समझती थी इसे


पूरी आज़ादी कितनी डरावनी है,

शायद इसलिए हम सब किसी न किसी

ऐसे तख़्त की तलाश में रहते हैं जहाँ

हमारे अधिकार सामजिक या पारिवारिक

ज़िम्मेदारी के नाम पर कुछ कम भी

कर दिए जाएँ तो हम चुप-चाप सह लेते हैं,

लेकिन वो जो अंदर बैठा इंसान है अपनी

नाक सिकोड़ लेता है


उसकी घुटन ज़िंदगी के हर एक पड़ाव के

साथ-साथ बढ़ती जाती है

तब दूसरे क़रीबी इंसानों की ये ज़िम्मेदारी

बनती है कि हम उसे खुली हवा में

सांस लेने के लिए कहें,

उसे बताएं कि पिंजरा नहीं है तुम्हारे

चारों तरफ.... 

किसी भी वहम, किसी भी घुटन में रहने की

कोई उसे ज़रूरत नहीं है

माँ

बोल के लब आज़ाद हैं तेरे

सोच के अब मन आज़ाद है तेरा


Rate this content
Log in