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Reetesh Sharma

Drama

4.5  

Reetesh Sharma

Drama

खामोशियां

खामोशियां

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वो जो ज़ुबाँ पर आते हुए लब्जों को सी जाते हो तुम

मगर चुप रहकर भी अपने जख्मों को बढ़ाते हो तुम


वो जो रोशनी तले, अंधेरे के साये में रहते हो तुम

और अपने को छुपाते भी हो अँधेरा फिर भी ढूंढ़ लेता है तुमको

हमे हर इक परछाई में नज़र आते हो तुम


हो अगर अकेले महज कुछ पल

मैंने देखा है बहुत सहम जाते हो तुम। 

वक़्त की सफेद चादर में जो रंग खोये हैं तुमने

उन रंगों को ढूंढ़ते पाए जाते हो तुम।


ये लम्हे जो गुज़र रहे हैं जैसे कतरा कतरा

ज़िन्दगी बस इन्हीं लम्हो में बिताते हो तुम


गर साथ ले लो मेरा तो, बांट लेंगे हम कुछ तन्हाइयां

कि कुछ पल तुम कुछ कहोगे

कुछ पल हम बैठे सुनेंगे तुम्हारी खामोशियां।


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