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sonia sarkar

Abstract

3  

sonia sarkar

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ख़ामोशी

ख़ामोशी

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जब कोई मुझे सुनने वाला न मिले ,

शोर मचे दिल में और दरवाज़ा न खुले ,

तब उठाती हूं कलम और खोलती हूं मन की  गिरहें ।


कहीं कुछ न कह पाती हूं जब कभी भी ,

किसी से बोलना जब घावों को नासूर बना देता है कहीं भी ,

तब कागज़ को समर्पित करती हूं मन की गिरहें।


लोगों से बिना किसी बात के क्या उलझें ,

वैसे ज़्यादा कहें भी तो क्या कहें ,

ख़ामोश इंसान के नाम से पहचान है,

अपनी बात आखिर कहां रखें ,

इसलिए कलम से खोलते हैं मन की गिरहें।


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