कृष्ण प्रेम
कृष्ण प्रेम
कभी माखन चुराए
कभी मन ,
ऐसे चोर को कहां कोई ढूंढे
जो दिल में आप समाए ।
कभी राधा से प्रीत लगाई ,
कभी मीरा की भक्ति पाई ,
ऐसे मनमोहन से कहां कोई रूठ कर जाई ।
उसकी अठखेलियों को यशोदा नहीं केवल झेला ,
पूरा गोकुल था क्रीड़ा वन वो जहां भी गया ।
