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Goldi Mishra

Abstract

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Goldi Mishra

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खामोशी में शोर

खामोशी में शोर

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उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था,

एक अलबेला आलम चारो ओर था,।।

बेसब्री थी थोड़ी,बेचैनी थी थोड़ी,

दिल को कहनी थी कुछ बातें,

काश लौट आए वो हसीन मुलाकातें,।।

उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था,

एक अलबेला आलम चारो ओर था,।।

सुध खोई थी मैने,

अपनी शाम हर रात किसी के नाम की थी मैने,

शमा बुझी हो जैसे साथ हमारा ऐसे बुझ गया,

यादों में खो कर उसकी दिल बंजारा हो गया,।।

उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था,

एक अलबेला आलम चारो ओर था,।।

पाक है ये जज़्बात किसी पीर की दुआ की तरह,

हम जुदा से है आसमान और जमीन की तरह,

खाली है ये दिल का मंजर रेत सा,

यादों से भरा है ये दिल किसी गहरे दरियां सा,।।

उस ख़ामोशी में भी कितना शोर था,

एक अलबेला आलम चारो ओर था,।।

छुअन तेरी ने तन को महकाया,

तेरे दीदार की खातिर हमने कई बार अपने आंगन को था सजाया,

सांसों में घुली है तेरी चाहते,

निगाहों में चमक उठी है फिर वो चाहतें ।।


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