खामोश होती सिसकियाँ
खामोश होती सिसकियाँ
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नोच डाली उन दरिंदों ने एक मासूम सी कली
लड़की होने की सज़ा फिर उसे मिली ।
जिस्म तार तार किया ,
रूह को बेज़ार किया ,
निर्बला पर अत्याचार किया ,
मासूम सी उस गुड़िया का ,सामूहिक बलात्कार किया ।।
जिव्हा काटी , रीढ़ तोड़ी , नृशंसता से वार किया ।
रक्त रंजित हुआ हाथरस ।
चीखती तड़पती रही वो बेबस ।
रौंदा उसके जिस्म को , आत्मा को घायल किया ।
इन पापी गिध्दों भूखे भेड़ियों को ,
हे भगवान ! मानव पैदा क्यों किया ?
क्षत विक्षत हुई बेटी ,आज लम्बी नींद सो गई ।
पर मौन चेहरों के ऊपर एक यक्ष प्रश्न छोड़ गई ।
कि कब तक निर्भया , गुड़िया जैसी बेटियां नोचीं जाएंगी ।
कब तक खूंखार दरिंदों के आगे, मासूम रूहें खरौंची जाएंगी ।
कब तक बेटियों की लाशों पर ,राजनीतिक रोटियां सेकीं जाएंगी ?
कब तक ये देश मौन रहेगा ,ये सिसकियाँ खामोश होती जाएंगी ?
आखिर कब तक ?