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Suresh Koundal

Tragedy

4.7  

Suresh Koundal

Tragedy

खामोश होती सिसकियाँ

खामोश होती सिसकियाँ

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नोच डाली उन दरिंदों ने एक मासूम सी कली

लड़की होने की सज़ा फिर उसे मिली ।

जिस्म तार तार किया ,

रूह को बेज़ार किया , 

निर्बला पर अत्याचार किया ,

मासूम सी उस गुड़िया का ,सामूहिक बलात्कार किया ।। 

जिव्हा काटी , रीढ़ तोड़ी , नृशंसता से वार किया ।

रक्त रंजित हुआ हाथरस ।

चीखती तड़पती रही वो बेबस ।

रौंदा उसके जिस्म को , आत्मा को घायल किया ।

इन पापी गिध्दों भूखे भेड़ियों को ,

हे भगवान ! मानव पैदा क्यों किया ?

क्षत विक्षत हुई बेटी ,आज लम्बी नींद सो गई ।

पर मौन चेहरों के ऊपर एक यक्ष प्रश्न छोड़ गई ।

कि कब तक निर्भया , गुड़िया जैसी बेटियां नोचीं जाएंगी ।

कब तक खूंखार दरिंदों के आगे, मासूम रूहें खरौंची जाएंगी । 

कब तक बेटियों की लाशों पर ,राजनीतिक रोटियां सेकीं जाएंगी ?

कब तक ये देश मौन रहेगा ,ये सिसकियाँ खामोश होती जाएंगी ?

आखिर कब तक ?




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