खामोश दीवारें
खामोश दीवारें
खड़ी खड़ी क्या सोच रही है
नसीब को अपने कोस रही है
बाहें फैलाई है सबको पुकारे
खाली मकान की खामोश दीवारें
कभी रंगों से सजा करती थी
तूफान से डरा करती थी
चमकते थे उस पर चांद सितारे
तन्हा सी हो गई वो खामोश दीवारें
मनाते थे सब मिलकर खुशियां
बहुत सुंदर थी छोटी सी दुनिया
क्या खूब थे उस घर के नजारे
तब बोल उठती थी खामोश दीवारें
स्वार्थ ने कर दिया सबको अंधा
रिश्तों को बना के रख दिया धंधा
मासूम बोल ना सके बीचारे
खामोश हो गई वो खामोश दीवारें
