खाली मकान
खाली मकान
आज किसी ने उस किराएदार की याद दिला दी जो आया था पल दो पल के लिए मेरे मकान में। कुछ अपना सामान छोड़ गया वो कुछ मेरा साथ ले गया।
आज उस बँद मकान को फिर से खोल दिया किसी ने, समय की पड़ी जो गर्त उस पर कुछ कह रही है मुझसे कहाँ चला गया वो पल में यूँ छोड़ कर जिस ने इस मकान को घर बनाया था दो पल के लिए ही सही वो एक बार तो आया था।
उस मकान में आज भी तुम्हारी तस्वीर नज़र आती है, कहीं-कहीं तुम्हारी परछाई सी लगती है, वक्त की आँधी ने फिर उस खाली पड़े मकान की धूल उड़ाई है।
खाली पड़ा था मकान मेरा खाली ही रहने देते ग़र नहीं था ठहरना तो आए ही क्यूँ, चलो आए तो ठीक बिन किराया दिए ही चले गए ,ये तो ठीक नहीं
मेरा कुछ उधार है तुम पर, कभी तो आकर चुका जाना एक बार ही सही आ जाना। तुम्हारा कुछ सामान है मेरे पास, मुझसे तो ना दिया जाऐगा ग़र तुम ले जा सको तो ले जाना।
मुझे पता है तुम नहीं आओगे, कभी नहीं फिर भी इस दिल ने एक आस लगाई है।
क्यों भूलूँ मैं तुम्हें, ये दिल कोई तुम्हारी जगीर तो नहीं, ये मकाँ मेरा है सिर्फ मेरा, मैं जिसे चाहूँ इस मकान में रखूँ या खाली रहने दूँ। पर क्या करूँ ये मकान किसी और को रास भी नहीं आता, ना जाने तुमनें इस मकान पे क्या जादछ टोना किया है।
तुम पल दो पल के लिए आए थे जिस मकान में उसकी छतों से जाले झलकते हैं, दीवारों में सीलन और फर्श पर दरारें आ गई हैं।
शायद तुम्हारे आने से ये मकान एक बार फिर से सँवर जाए, शायद इसमें कुछ निखार आ जाए, शायद ये फिर से घर बन जाए।
इस मकान में ग़र तुम रह जाते तो ये यूँ जर्जर ना होता। एक सुन्दर सा घर होता हाँ एक प्यारा सा शायद ताजमहल होता।