खाली झोली।
खाली झोली।
तेरे द्वार खड़ा एक दीन, प्रभु भीख मुझको दीजिए।
हर द्वार से निराशा मिली, प्रभु झोली मेरी भर दीजिए।।
हृदय भरा मलिन विकारों से, राग -द्वेष की गंध आने लगी।
लोभ की ऐसी चादर चढ़ी, प्रेम-भाव को मिटाने लगी।।
मन की सिर्फ यही बात सुनी, भोग- विलास में ही शांति है।
विलासिता में जीवन बीत रहा, जो मात्र एक भ्रांति है।।
जीवन अंधकार में अब फंसा पड़ा, प्रकाश की किरण का सहारा है।
भवसागर में बहकर थक गया, केवल तू ही मेरा किनारा है।।
कुविचारों ने ऐसा घेर लिया, सद विचारों की कोई जगह नहीं।
विचारों के इन भूचालों से, खिवैया का कोई पता नहीं।।
मनुष्य जन्म मिला बड़े भाग्य से, जीने की कला न सीख सका।
सपनों की दुनिया के चक्कर में, परहित को ना समझ सका।।
अब बेबस होकर हे प्रभु !कल्याण की राह दिखा दीजिए
हार थक कर "नीरज" शरण पड़ा, अब तो झोली भर दीजिए।
