खाब रह गया
खाब रह गया
ख्वाब में एक ख्वाब देखा ख्वाब रह गया,
कि मैं देखकर ही बस उसे बेताब रह गया।
क्या रंग था क्या रूप यारों क्या बताऊँ मैं,
इक बस उठाने से वही नकाब रह गया।
वो मिल ही जाता राह में रास्ता बदल गया,
जो मिलना था मुझे वही ख़िताब रह गया।
मैं जल गया उस आग में जो आग थी नहीं,
बस घर से साथ लेने में सच आब रह गया।
सुधर गए वो लोग भी जो थे बिगड़ गए,
ये राही जाने कैसे बस खराब रह गया।