कड़वा सच जीवन का
कड़वा सच जीवन का
पल दो पल का जीवन सारा
हर कोई एक दिन मौत से हारा
चलती नहीं मर्जी नियति के आगे
चाहे कोई जितना भी भागे
जीवन जिया सुख-दुख के साथ
सदा ना रहता कोई साथ
इंसा जिस लोक से आता
पुनः फिर वही लौट जाता
बचपन जवानी वृद्धावस्था
जीवन की है तीन अवस्था
आना तो उत्सव है बनता
पर जाना विरह बन जाता
जीवन का यह आना-जाना
सबने इस सत्य को माना
ना चाहने पर भी मौत तो है आती
आनेवाले पल की चिंता क्यूं इंसान को खा जाती
ओछी बातों को मन से त्यागो
सच्चाई को ग्रहण करों
जिन घड़ियों में हम हॅंस सकते हैं
क्यूं तड़पे हम संताप करें
नियति का है आना-जाना
फिर क्यूं हम विलाप करें
कल क्या होगा किसी ने ना देखा
सच तो है वर्तमान की रेखा
जीवन में खुशी व गम का पलड़ा भारी
चक्र यह जीवन का रहता जारी
मानव डर ना इस दुःख से
ज्यादा खुश हो ना क्षणिक सुख से
सुख भी नश्वर दुःख भी नश्वर
एक दिन हो जाता शरीर भी नश्वर
जीवन तो एक माया है
जिसे मिट्टी में मिल जाना है
माना कदम-कदम पर मिलते धोखे
पर खुशियों के भी मिलते मौके
कभी ना हारों हिम्मत व आस
खुद पर रखो अटूट विश्वास
जिंदादिल होकर जीवन में
बस जाओ सबके दिल में
जीवन तो अतुल्य है प्यारों
इसे कभी खुद नहीं खोना
मृत्यु सत्य है आएगी एक दिन
इसके लिए ना टूटो हर दिन
जीवन का यही पैमाना है
हमें खुश होकर निभाना है